दुर्गा, जिसे शक्ति और विजय की देवी के रूप में पूजा जाता है, भारतीय संस्कृति में स्त्रीशक्ति का अद्वितीय प्रतीक हैं। इंदौर के प्रसिद्ध ज्योतिषी मनोज साहू जी के अनुसार दुर्गा का नाम सुनते ही मन में एक ऐसी छवि उभरती है जो साहस, शक्ति, और करुणा का मिश्रण है। ज्योतिष के अनुसार उनके विभिन्न रूपों में संसार की सभी स्त्रियों की ऊर्जा और शक्ति निहित है।देवी दुर्गा को असुरों पर विजय प्राप्त करने वाली, राक्षसों को पराजित करने वाली और धर्म की रक्षा करने वाली देवी के रूप में माना जाता है। साहू जी के अनुसार वे केवल पराक्रम और पराक्रमी शक्ति की देवी ही नहीं, बल्कि प्रेम, समर्पण और करुणा का भी प्रतीक हैं। भारतीय धर्मशास्त्रों में दुर्गा को ‘महाशक्ति’ माना गया है, जो ब्रह्मांड की संरचना, पालन और संहार की शक्ति का प्रतिनिधित्व करती हैं।
दुर्गा: शक्ति का स्रोत
दुर्गा को शक्ति का सर्वोच्च स्रोत माना जाता है। हिंदू धर्म में, वे आदिशक्ति हैं जिनसे सृष्टि की रचना होती है। जब-जब अधर्म और असुर शक्तियाँ बढ़ती हैं, तब-तब देवी दुर्गा पृथ्वी पर अवतरित होती हैं और अपने भक्तों की रक्षा करती हैं। साहू जी के अनुसार दुर्गा सप्तशती और देवी भागवत पुराण में उनके अवतारों का वर्णन मिलता है, जहाँ वे विभिन्न रूपों में असुरों और दुष्टों का संहार करती हैं।उनका नाम “दुर्गा” इसलिए पड़ा क्योंकि उन्होंने दुष्टों और राक्षसों को पराजित कर संसार को धर्म और न्याय के मार्ग पर स्थापित किया। ज्योतिष के अनुसार दुर्ग’ शब्द का अर्थ होता है ‘किला’, अर्थात दुर्गा वह देवी हैं जो अपने भक्तों की रक्षा करती हैं और हर कठिनाई को पार करने का मार्ग दिखाती हैं।
दुर्गा के रूप

दुर्गा के नौ प्रमुख रूपों को नवरात्रि के नौ दिनों में पूजा जाता है, जिन्हें “नवदुर्गा” कहा जाता है। साहू जी के अनुसार हर रूप एक विशेष शक्ति और गुण का प्रतिनिधित्व करता है, जिससे भक्त को जीवन की विभिन्न चुनौतियों का सामना करने का साहस और सामर्थ्य प्राप्त होता है। दुर्गा के ये नौ रूप निम्नलिखित हैं:
शैलपुत्री – यह दुर्गा का पहला रूप है, जो पर्वतों की पुत्री हैं। यह रूप प्रकृति की शक्ति और स्थिरता का प्रतीक है।
ब्रह्मचारिणी – यह रूप संयम, तपस्या और ध्यान की शक्ति का प्रतीक है।
चंद्रघंटा – यह दुर्गा का तीसरा रूप है, जो शौर्य और पराक्रम का प्रतीक है।
कूष्मांडा – यह स्वरूप सृजन की शक्ति का प्रतीक है।
स्कंदमाता – यह माँ का रूप है, जो प्रेम और ममता का प्रतीक है।
कात्यायनी – यह रूप साहस, पराक्रम और शत्रुओं के विनाश का प्रतीक है।
कालरात्रि – यह दुर्गा का सबसे भयानक रूप है, जो काल और मृत्यु की शक्ति का प्रतिनिधित्व करता है।
महागौरी – यह रूप शांति और ज्ञान का प्रतीक है।
सिद्धिदात्री – यह देवी का वह रूप है, जो अपने भक्तों को सिद्धि और आशीर्वाद प्रदान करती हैं।
हर रूप एक विशेष शक्ति का प्रतीक है और इसीलिए दुर्गा को ‘सर्वशक्तिमान’ माना जाता है।
दुर्गा और महिषासुर मर्दिनी
मध्यप्रदेश के प्रसिद्ध ज्योतिषी मनोज साहू जी के अनुसार दुर्गा के महिषासुर मर्दिनी रूप की कथा उनके साहस, शौर्य और पराक्रम को दर्शाती है। पौराणिक कथा के अनुसार, महिषासुर नामक असुर ने अपनी शक्ति से तीनों लोकों में आतंक मचा रखा था। देवताओं ने महिषासुर का सामना करने के लिए देवी दुर्गा की आराधना की, और माँ ने महिषासुर को युद्ध में पराजित कर उसका वध किया। इस घटना के कारण दुर्गा को ‘महिषासुर मर्दिनी’ कहा गया।
साहू जी के अनुसार यह कथा यह संदेश देती है कि बुराई कितनी भी बड़ी क्यों न हो, जब धर्म और सत्य की शक्ति उसके सामने खड़ी होती है, तो उसका अंत निश्चित है। देवी दुर्गा ने महिषासुर के रूप में अज्ञान, अहंकार और अन्याय का नाश किया और अपने भक्तों को आश्वासन दिया कि वे सदैव उनके साथ हैं, चाहे परिस्थितियाँ कितनी भी कठिन क्यों न हों।
दुर्गा पूजा का महत्व

दुर्गा पूजा विशेष रूप से बंगाल, बिहार, ओडिशा, और असम में बड़े धूमधाम से मनाई जाती है। यह पर्व देवी दुर्गा की शक्ति और उनके साहस की पूजा का प्रतीक है। दुर्गा पूजा का महत्व न केवल धार्मिक है, बल्कि यह सामाजिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण से भी अत्यंत महत्वपूर्ण है।
दुर्गा पूजा के दौरान माँ दुर्गा की मूर्तियों की स्थापना की जाती है, और नौ दिनों तक विशेष अनुष्ठान किए जाते हैं। साहू जी के अनुसार नवरात्रि के दौरान भक्त उपवास रखते हैं, और माँ की कृपा पाने के लिए प्रार्थना करते हैं। इस अवधि में भक्तों को यह सीख मिलती है कि कैसे कठिनाइयों का सामना धैर्य और साहस से करना चाहिए।
तंत्र साधना में दुर्गा का महत्व
तंत्र साधना में दुर्गा को ‘महाविद्या’ के रूप में पूजा जाता है। ज्योतिष के अनुसार, दुर्गा के विभिन्न रूपों की साधना करने से साधक को अद्वितीय शक्तियाँ प्राप्त होती हैं। तंत्र में दुर्गा की साधना मानसिक और शारीरिक बल को बढ़ाती है। साधक दुर्गा के रूप में ब्रह्मांड की आदि शक्ति का अनुभव करता है, और उसके जीवन में स्थिरता और समृद्धि आती है।
दुर्गा की तंत्र साधना से साधक के जीवन के सभी दोष और बाधाएँ दूर हो जाती हैं, और वह आत्मिक शांति का अनुभव करता है। साधक को देवी दुर्गा की कृपा से भौतिक सुखों और आध्यात्मिक लक्ष्यों की प्राप्ति होती है।
ज्योतिष और दुर्गा साधना
ज्योतिष शास्त्र में दुर्गा की साधना विशेष रूप से उन लोगों के लिए फलदायी मानी जाती है, जिनकी कुंडली में राहु, केतु और शनि ग्रहों का प्रभाव अधिक हो। दुर्गा की कृपा से इन ग्रहों के अशुभ प्रभाव कम हो जाते हैं, और साधक को जीवन में सुख, समृद्धि और शांति की प्राप्ति होती है।
विशेष रूप से राहु और केतु के दुष्प्रभाव से मुक्ति के लिए माँ दुर्गा की आराधना की जाती है। दुर्गा सप्तशती के पाठ से साधक को ग्रहों की शांति मिलती है और वह जीवन की कठिनाइयों से उबर सकता है।
माँ दुर्गा के मन्त्र और साधना विधि
साहू जी के अनुसार माँ दुर्गा की साधना में मंत्रों का विशेष महत्व है। दुर्गा सप्तशती में कई मंत्र दिए गए हैं, जो साधक के जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार करते हैं। प्रमुख मंत्र है:
“ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे”
इस मंत्र का नियमित जाप करने से साधक को आत्मबल, साहस और मानसिक शांति की प्राप्ति होती है। साहू जी के अनुसार साधना के दौरान साधक को शुद्ध और पवित्र मन से माँ दुर्गा की पूजा करनी चाहिए। दुर्गा की साधना के लिए नौ दिनों का उपवास और उनकी मूर्ति या चित्र के सामने दीपक जलाना अत्यंत फलदायी होता है।
दुर्गा के आशीर्वाद से विजय की प्राप्ति

माँ दुर्गा की साधना और पूजा से साधक को जीवन में हर क्षेत्र में विजय की प्राप्ति होती है। भारत के प्रसिद्ध ज्योतिषी मनोज साहू जी के अनुसार वे जीवन की कठिनाइयों का सामना करने की शक्ति देती हैं और साधक को संघर्षों से उबरने की क्षमता प्रदान करती हैं। दुर्गा की कृपा से व्यक्ति को शारीरिक और मानसिक बल प्राप्त होता है, जिससे वह अपने सभी शत्रुओं और विपरीत परिस्थितियों का सामना करने में सक्षम होता है।
दुर्गा की उपासना से साधक को आत्मविश्वास, साहस और मानसिक स्थिरता की प्राप्ति होती है। ज्योतिष के अनुसार माँ दुर्गा की कृपा से साधक के जीवन में हर प्रकार की बाधाएँ समाप्त हो जाती हैं और उसे जीवन में सफलता की प्राप्ति होती है।
माँ दुर्गा केवल शक्ति की देवी ही नहीं, बल्कि वे प्रेम, करुणा और धैर्य का भी प्रतीक हैं। उनकी पूजा और साधना से साधक को न केवल भौतिक सुखों की प्राप्ति होती है, बल्कि उसे आत्मिक शांति और मोक्ष की ओर भी अग्रसर होने का मार्ग मिलता है।
साहू जी के अनुसार देवी दुर्गा की महिमा अनंत है और उनकी उपासना से साधक के जीवन में स्थायी सुख, समृद्धि, और शांति का संचार होता है। चाहे वह तंत्र साधना हो, ज्योतिषीय उपाय हों, या धार्मिक अनुष्ठान हों, माँ दुर्गा की कृपा से जीवन की हर कठिनाई का समाधान संभव है। उनका आशीर्वाद साधक के जीवन को सफल और सशक्त बनाता है, और उसे हर संघर्ष में विजय प्राप्त होती है।
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