सप्तम भाव में अशुभ ग्रहों का प्रभाव
इंदौर के प्रसिद्ध ज्योतिषी साहू जी के अनुसार वैदिक ज्योतिष में सप्तम भाव विवाह और साझेदारी का घर होता है। यदि इस भाव में अशुभ ग्रहों (जैसे शनि, राहु, केतु या मंगल) का प्रभाव हो, तो साहू जी के अनुसार यह विवाह जीवन में समस्याएँ उत्पन्न कर सकता है। विशेषकर, शनि और मंगल का संयोजन सप्तम भाव में वैवाहिक जीवन में तनाव और विवाद को बढ़ावा दे सकता है।
सप्तम भाव का स्वामी कमजोर या प्रतिकूल स्थिति में होना
सप्तम भाव का स्वामी ग्रह यदि कमजोर स्थिति में हो, अस्त हो या प्रतिकूल ग्रहों के साथ युति कर रहा हो, तो विवाह जीवन में अस्थिरता और संघर्ष की संभावना बढ़ जाती है। वैदिक ज्योतिष में यह स्थिति वैवाहिक जीवन में सामंजस्य और स्थायित्व की कमी को दर्शाती है।
राहु और केतु का प्रभाव
ज्योतिषी साहू जी के अनुसार राहु और केतु का असर भी विवाह जीवन पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकता है। सप्तम भाव में राहु या केतु की स्थिति या इन ग्रहों का सप्तम भाव के स्वामी पर प्रभाव वैवाहिक जीवन में भ्रम, अविश्वास और संघर्ष को बढ़ा सकता है।
मंगल दोष
मंगल दोष (मांगलिक दोष) वैवाहिक जीवन में तनाव और समस्याओं का एक प्रमुख कारण हो सकता है। ज्योतिषी साहू जी के अनुसार यदि मंगल ग्रह पहले, चौथे, सातवें, आठवें या बारहवें भाव में स्थित हो, तो इसे मंगल दोष माना जाता है। यह दोष विवाह में देरी, कलह और तलाक की संभावना को बढ़ा सकता है।
दशाओं और अंतर दशाओं का प्रभाव
विवाह जीवन पर दशाओं और अंतरदशाओं का भी महत्वपूर्ण प्रभाव होता है। यदि अशुभ ग्रहों की दशा चल रही हो, तो यह वैवाहिक जीवन में तनाव और समस्याएँ उत्पन्न कर सकती है। वैदिक ज्योतिषी साहू जी के अनुसार शनि, राहु या मंगल की दशा और अंतरदशा विशेष रूप से वैवाहिक जीवन में चुनौतियाँ ला सकती हैं।
अन्य ज्योतिषीय दृष्टिकोण
कुंडली मिलान में दोष
भारतीय ज्योतिष में विवाह से पहले (गुण मिलान) का प्रचलन है। ज्योतिषी साहू जी के अनुसार यदि कुंडली मिलान में दोष हों, जैसे नाड़ी दोष, गण दोष, या भकूट दोष, तो वैदिक ज्योतिष में यह विवाह जीवन में अस्थिरता और समस्याओं का कारण बन सकता है।
शुक्र और चंद्रमा की स्थिति
भारत के प्रसिद्ध ज्योतिषी साहू जी के अनुसार शुक्र और चंद्रमा प्रेम और भावनाओं के ग्रह माने जाते हैं। यदि ये ग्रह कमजोर हों, अस्त हों या प्रतिकूल स्थिति में हों, तो यह वैवाहिक जीवन में प्रेम और भावनात्मक संतुलन की कमी को दर्शा सकता है। इससे वैवाहिक जीवन में दूरियाँ और मनमुटाव बढ़ सकते हैं।
दोनों पक्षों की कुंडली में सप्तम भाव की स्थिति
इंदौर के प्रसिद्ध ज्योतिषी साहू जी के अनुसार पति और पत्नी दोनों की कुंडली में सप्तम भाव और इसके स्वामी ग्रह की स्थिति भी वैवाहिक जीवन पर महत्वपूर्ण प्रभाव डालती है। वैदिक ज्योतिष के अनुसार यदि दोनों की कुंडली में सप्तम भाव में नकारात्मक ग्रहों का प्रभाव हो, तो वैवाहिक जीवन में सामंजस्य स्थापित करना कठिन हो सकता है।
ज्योतिषीय उपाय
ज्योतिषीय दृष्टिकोण से वैवाहिक जीवन में आ रही समस्याओं को दूर करने के लिए कई उपाय सुझाए जा सकते हैं:
पूजा और मंत्र जाप
विशेष रूप से सप्तम भाव और इसके स्वामी ग्रह से संबंधित देवी-देवताओं की पूजा और मंत्र जाप करना लाभकारी हो सकता है। उदाहरण के लिए, मंगल दोष के लिए हनुमान चालीसा का पाठ, और शुक्र और चंद्रमा की स्थिति सुधारने के लिए लक्ष्मी और चंद्रमा की पूजा करना।
रत्न धारण करना
ज्योतिष शास्त्र में रत्नों का विशेष महत्व है। सही रत्न धारण करने से ग्रहों के प्रतिकूल प्रभाव को कम किया जा सकता है। जैसे, मंगल दोष के लिए मूंगा, और शुक्र ग्रह को मजबूत करने के लिए हीरा धारण करना।
व्रत और उपाय
कुछ विशेष व्रत और उपाय भी वैवाहिक जीवन में समस्याओं को दूर करने में सहायक हो सकते हैं। जैसे कि, शुक्रवार के दिन व्रत रखना और देवी लक्ष्मी की पूजा करना।
दान और धर्म कार्य
किसी भी अशुभ ग्रह की शांति के लिए दान और धर्म कार्य करना भी प्रभावी उपाय हो सकता है। जैसे, शनि के प्रतिकूल प्रभाव को कम करने के लिए शनिदेव की पूजा और गरीबों को तिल और सरसों का तेल दान करना।
निष्कर्ष
भारत के प्रसिद्ध ज्योतिषी साहू जी के अनुसार, विवाह जीवन में आ रही समस्याओं को समझने और उनका समाधान ढूंढ़ने के लिए कुंडली का विश्लेषण करना आवश्यक है। सप्तम भाव, उसके स्वामी ग्रह, और अन्य संबंधित ग्रहों की स्थिति को देखकर वैवाहिक जीवन में आने वाली चुनौतियों का पूर्वानुमान लगाया जा सकता है। अगर आपको लगता है कि आपकी शादी टूटने की कगार पर है, तो ज्योतिषीय परामर्श और उपायों को अपनाकर आप अपनी शादी को बचा सकते हैं और अपने वैवाहिक जीवन को सुखमय बना सकते हैं।
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